हे राजा राम तेरी आरती उतारु
अवध बिहारी तेरी आरती उतारू
कनक सिंहासन राजत जोड़ी
दशरथ नंदन जनक किशोरी
युगल छवि को सदा निहारु
वाम अंग सो हे जग जननी
चरण विराजत है सुत अंजनी
उन चरणों को सदा पखारू
आरती हनुमत के मन भाये
रामकथा लिख शिवजी गाये
रामकथा हृदय में उतारू
चरणों से निकली गंगा प्यारी
वंदन करती दुनिया सारी
उन चरणों में सिर को