उद्यापन क्या है
किसी भी पूजा के प्रति लिया हुआ संकल्प जब वह संकल्प पूरा हो जाता है तो अंतिम पूजा की जाती है जिसे उद्यापन कहते है
क्यों किया जाता है सोमवार व्रत
सोलह सोमवार व्रत विशेष रूप से विवाहित जीवन में परेशानियों का सामना करने वाले लोगों के लिए है। यह व्रत अच्छे एवं मनोवांछित जीवन साथी को पाने के लिए भी किया जाता है। सोलह सोमवार व्रत का प्रारम्भ करने वाली माँ पार्वती स्वयं हैं। एक बार जब उन्होंने इस धरती पर अवतार लिया था तो वह एक बार पुनः भगवान शिव को प्राप्त करने के लिए सोमवार व्रत की कठिन तपस्या और शिव पूजन का आयोजन किया।सोलह सोमवार व्रत को सम्भव हो सके तो , श्रावण मास से ही शुरू करना
सोलह 16 सोमवार व्रत का उद्यापन करने की विधि
सोमवार के व्रत का उद्यापन श्रावण मास के पहले या तीसरे सोमवार को करना शुभ होता है सोमवार का दिन भगवान भोलेनाथ को समर्पित है. इस दिन देवों के देव महादेव की विशेष पूजा करने और व्रत रखने का विधान है. आप अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए 16 सोमवार या मनोकामना पूरी होने तक का सोमवार व्रत रख सकते हैं. सोमवार व्रत रखने से पहले आप जितने व्रत करने का संकल्प लेते हैं. उतने ही सोमवार को व्रत करें और जब आपकी मनोकामनाएं पूरी हो जाए तब सोमवार के व्रत का उद्यापन कर दें. आपकी जानकारी के लिए बता दें कि किसी भी व्रत का समय पूरा होने के बाद भगवान की जो अंतिम पूजा या व्रत होता है, उस व्रत को ही उद्यापन कहा जाता है.व्रत उद्यापन में शिव-पार्वती जी की पूजा के साथ चंद्रमा की भी पूजा करने का विधान है. उद्यापन पूरे विधि विधान से किया जाना जरूरी है.
विधि
- सुबह उठकर नित्य कर्म से निवृत हो स्नान करें.
- स्नान के बाद हो सके तो सफेद वस्त्र धारण करें.
- पूजा स्थल को गंगा जल से जरूर शुद्ध करें.
- पूजा स्थल पर केले के चार खम्बे के द्वारा चौकोर मण्डप बना लें.
- चारों ओर से फूल और बंदनवार (आम के पत्तों का) से सजायें.
- पूर्व की ओर मुख करके आसन पर बैठ जायें और साथ में पूजा सामग्री भी रख लें.
- आटे या हल्दी की रंगोली बनाये उसके ऊपर चौकी या लकड़ी के पटरे को मंडप के बीच में रखें.
- इसके बाद चौकी पर साफ और कोरा सफेद वस्त्र बिछायें.
- उस पर शिव-पार्वती जी की प्रतिमा या फिर फोटो को स्थापित करें.
- चौकी पर किसी पात्र में रखकर चंद्रमा को भी स्थापित करें.
- सबसे पहले अपने आप को शुद्ध करने के लिये पवित्रीकरण जरूर करें.
- सामग्री
- भगवान भोले नाथ माँ पार्वती की मूर्ति
- चन्द्र देव की मूर्ति
- कलश
- रोली
- मोली
- लौंग
- इलायची
- धूप
- दीप
- जनेऊ
- सुपारी
- कुंशा
- तुलशी दल
- पान के पते
- नारियल पानी वाला
- पंच फल
- पंच मेवा
- पंच मिठाई
- पंच पल्लव
- पंच गव्य (दूध दही शहद गंगाजल घी)हवन सामग्री
- हवन समिधा
पूजा हवन करने के बाद कन्या पूजन कन्या व ब्रह्म भोज एवं गौ ग्रास आदि के बाद सभी को दक्षिणा अर्पण कर क्षमा प्रार्थना करे