आरती अवध बिहारी की
दयामयी जनक दुलारी की
सिहासन सोहे युगल सरकार
परस्पर हसिये रत हर बार
मधुर कछु बोल
लेत मन मुल
ललित छवि प्रीतम प्यारी की
पलोटत पाये अनज्नी लाल
निरख पद पंकज होत निहाल
कहत रघुराई
धञ्य सेवकाई
पवन सुत गिरवर धारी की
भरत जु ठाडे भाव विभोर
लखन रिपु दमन लाल कर जोर
लखे मुख चन्द
लेत आनन्द
धन्य शोभा धनुधारी की
आरती जो कोई जन गावे
प्रभो पद प्रेम अवश्य पावे
शरण राजेश
त्रिअवे अवधेश
बोलिये जय भय हारी कि