क्षेत्रपाल किसे कहते हैं
क्षेत्रपाल क्षेत्र विशेष के एक देवता होते हैं जिनके अधिन उक्त क्षेत्र की आत्माएं रहती हैं। भारत के अधिकतर गांवों में भैरवनाथ, खेड़ादेवत (हनुमानजी), सतीमाई, कालीमाई, सीतलामाई पथवारी माता,और क्षेत्रपाल आदि के मंदिर होते हैं। यह सभी ग्राम देवता होते हैं और सभी के अलग-अलग कार्य माने गए हैं
क्षेत्रपाल पूजा क्यों करें
क्षेत्रपाल हमारे क्षेत्र के रक्षक होते हैं ये हमे बुरी आत्माओं से बचाते हैं इनकी पूजा का प्रयोजन हमारे नगर पर कोई संकट ना आये क्षेत्रपाल के लिए गांवों में या वास्तु पूजा के समय विशेष पूजा होती है। कहते हैं कि आप जिस भी क्षेत्र में रहने जा रहे हैं उस क्षेत्र का एक अलग ही क्षेत्रपाल होता है अत: वहां रहने से पहले उसकी पूजा करके उसकी अनुमति से रहा जाता है ताकि किसी भी प्रकार का कोई संकट ना आये
भगवान कालभैरव को क्षेत्रपाल बाबा, खेतल, खंडोवा, भैरू महाराज, भैरू बाबा आदि नामों से जाना जाता है। क्षेत्रपाल को खेतपाल भी कहा जाता है। खेतपाल, जो कि खेत का स्वामी है।
क्षेत्रपाल का कोप
क्षेत्रपाल दोष लगने पर व्यक्ति को राख का तिलक लगाने की आदत हो जाती है, | उसे बेकार से स्वप्न आने लगते है, | पेट में दर्द होता रहता है, | जोडों के दर्द की दवाइयां चलती रहती है लेकिन वह ठीक नही होता है। लेकिन कई उपाय करने के बावजूद भी नही बच पाते है, | डाक्टरों की कोई दवाई उनके लिये बेकार ही साबित होती है। इसलिए हमें क्षेत्रपाल पूजा कर उनको प्रसन्न करना एवं उनकी अनुमति लेनी चाहिए
क्षेत्रपाल बलि
एक मिट्टी का बडा दीपक ( सराई ) लेकर उसमें चार मुंह की ज्योत लगावें । दीपक में सरसों का तेल डालें . उसमें सिन्दूर , उडद , पापड , दही , गुड , सुपारी आदि रखकर दीप प्रज्वलित करें और क्षेत्रपाल का आवाहन करें ।
ॐ क्षेत्रपालाय शाकिनी डाकिनी भूतप्रेत बेताल पिशाच सहिताय इमं बलिं समर्पयामि । भो क्षेत्रपाल : दिशो रक्ष बलिं भक्ष मम यजमानस्य सकुटुम्बस्य सपरिवारस्य आयु : कर्ता शांतिकर्ता तुष्टिकर्ता पुष्टिकर्ता वरदो भव : ।
ॐ ह्नीं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरु कुरु बटुकाय ह्नीं ॐ ।
ॐ क्षेत्रपालाय नम : । इति पंचोपचारै : संपूज्य । प्राथयेत्
ॐ नमो वै क्षेत्रपालस्त्वं भूतप्रेत , गणै : सह । पूजाबलिं गृहाणेमं सौम्यो भवतु सर्वदा ॥
पुत्रान् देहि धनं देहि सर्वान् कामांश्च देहि में । देहि में आयुरारोग्यं निर्विघ्नं कुरु सर्वदा न : ॥
अब इस दीपक को उठाकर यजमान की तरफ आवृत कर बिना पीछे मुडे बाहर दीपक को चौराहे पर रखावें । ब्राह्मण शांतिपाठ करें । ब्रह्मा जी द्वार तक जल छोडें दीपक को रखकर आने वाला व्यक्ति नहाकर या हाथ पैर धोकर आवे ।
क्षेत्रपाल चालीसा
|| दोहा ||
भोलेनाथ को सुमरि मन, धर गणेश को ध्यान ।
श्री क्षेत्रपाल चालीसा पढू , कृपा करहूँ भगवान ।।
क्षेत्रपाल भैरव भजू, श्री काली के लाल ।
मुझ दास पर कृपा करो , मेरे बाबा क्षेत्रपाल ।।
|| चौपाइया ||
जय जय श्री भैरव मतवाला । रहो दास पर सदा दयाला ।।
भैरव भीषण भीम कपाली । क्रोधवंत लोचन में लाली ।।
कर त्रिशूल है कठिन कराला । गल में प्रभु मुंडन की माला ।।
कृष्ण रूप तन वर्ण विशाला । पीकर मद रहता मतवाला ।।
क्षेत्रपाल भक्तन के संगी । प्रेतनाथ भूतेश भुजंगी ।।
श्री क्षेत्रपाल है नाम तुम्हारा । चक्रदंड अमरेश पियारा ।।
शिव नकुलेश चंड हो स्वामी । बैजनाथ प्रभु नमो नमामी ।।
अश्वनाथ क्रोधेश बखाने । भैरव काल जगत में जाने ।।
गायत्री कहे निमिष दिगंबर । जगन्नाथ उन्नत आडम्बर ।।
क्षेत्रपाल दशपाणी कहाए । मंजुल उमानंद कहलाये ।।
चक्रनाथ भक्तन हितकारी । कहे त्रयम्बकं सब नर नारी ।।
संहारक सुनन्द सब नामा । करहु भक्त के पूरण कमा ।।
क्षेत्रपाल शमशान के वासी । व्यालपवित हाथ यम फाँसी ।।
कृत्यायु सुन्दर आनंदा । भक्तन जन के काटहु फन्दा ।।
कारण लम्ब आप भय भंजन । नमो नाथ जय जनमन रंजन ।।
हो तुम मेष त्रिलोचन नाथा । भक्त चरण में नावत माथा ।।
तुम असितांग रूद्र के लाला । महाकाल कालो के काला ।।
ताप विमोचन अरिदल नासा । भाल चन्द्रमा करहि प्रकाशा ।।
श्वेत काल अरु लाल शरीरा । मस्तक मुकुट शीश पर चीरा ।।
काली के लाला बलधारी । कहं लगी शोभा कहहु तुम्हारी ।।
शंकर के अवतार कृपाला । रहो चकाचक पी मद प्याला ।।
काशी के कुतवाल कहाओ । क्षेत्रपाल चेटक दिखलाओ ।।
रवि के दिन जन भोग लगावे । धुप दीप नवेद चढ़ावे ।।
दर्शन कर के भक्त सिहावे । तब शुरा की धार पियावे ।।
मठ में सुन्दर लटकत झाबा । सिद्ध काज करो भैरव बाबा ।।
नाथ आप का यश नहीं थोडा । कर में शुभग शुशोभित कोड़ा ।।
कटि घुंघरा सुरीले बाजत । कंचन के सिंघासन राजत ।।
नर नारी सब तुमको ध्यावे । मन वांछित इच्छा फल पावे ।।
भोपा है आप के पुजारी । करे आरती सेवा भारी ।।
बाबा भात आप का गाऊं । बार बार पद शीश नवाऊ ।।
ऐलादी को दुःख निवारयौ । सदा कृपा करि काज सम्हारयो ।।
जो नर(नारी) मन से ध्यान लगावे ।
दुःख दारिद्र निकट नहीं आवे ।।
लूले लँगड़े पैर चलावे । नेत्रहीन ज्योति को पावे ।।
नीसंतान संतान को पावे । जात जडूला कर भोग लगावे ।।
कौड़ी नर भी काया पावे । वाय, मिर्गी जड़ से मिटावे ।।
काया के सव रोग मिटावे । धाम डाबरा जो कोई आवे ।।
भूत , जिन्न तो यूही भग जावे । सांकड़ की जब मार लगावे ।।
दृढ़ विशवास कर क्षेत्रपाल के आवे ।मृत प्राणी भी जीवित हो जावे ।।
तुमरो दास जहाँ भी होई । ता पर संकट परे न कोई ।।
तुम बिन अव ना कोई मेरो । संकट हरण हरउ दुःख मेरो ।।
|| दोहा ||
जय जय श्री भैरव मतवाडा, स्वामी संकट टार ।
कृपा दास पर कीजिये शंकर के अवतार ।।
श्री क्षेत्रपाल चालीसा पढे , प्रेम सहित शतवार ।
उस घर सर्वानन्द हो , वैभव बढे अपार ।।
क्षेत्रपाल चालीसा समाप्त।