क्या है उद्यापन मतलब
उद्यापन का शाब्दिक अर्थ है ‘समापन’ । किसी भी धार्मिक व्रत या अनुष्ठान को उसके लिए निर्धारित अनुष्ठान के साथ समाप्त करना होता है जिसे आमतौर पर उद्यापन या पारणा कहा जाता है। इसमें व्रत में शामिल उपवास के बाद भोजन करना और जरूरतमंदों को उपहार देना शामिल है।
शास्त्रों के अनुसार एकादशी उद्यापन दो दिन की पूजा होती है पहले दिन एकादशी को व्रत के साथ पूजा होती है तथा द्वादशी को हवन करके 24 या12 ब्राह्मणों को दान देकर भोजन करवाया जाता है।
कब करना चाहिये उद्यापन
एकादशी माह में दो बार आती है कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष. इस तरह वर्ष में 24 एकादशियां आती हैं. इसका उद्यापन देवताओं के प्रबोध समय में ही एकादशी के व्रत का उद्यापन करें, विशेष कर मार्गशीर्ष के महीने में, माघ माह में या भीम तिथि (माघ शुक्ल एकादशी) के दिन ही इस व्रत का उद्यापन करना चाहिए.
विधि
एकादशी रखने वाले साधक को दशमी तिथि को एक समय भोजन करना चाहिए शाम के समय दनतावन्धन करके उपवास प्रारम्भ करना चाहिए यदि साधक 12 एकादशी रख कर उद्यापन करे तो 12 ब्राह्मण यदि 24 रखी हो तो चौबीस ब्राह्मण और अधिक मास के साथ 26 रखी हो तो 26 ब्राह्मण और एक जोड़ा यानी व्रत रखने वाले पति पत्नी को उपवास कराये
एकादशी को स्वयं भी उपवास रखे एवं ब्राह्मणों को भी उपवास धारण करने की प्राथना करे ब्राह्मणों को घर बुलाकर चरण पखारे पूजन करे और उनको फलाहार कराये दोनो समय फलाहार करा कर पूजन प्राथना करे रात्रि जागरण कीर्तन करे अगले दिन सर्व देव पूजन करे फिर जिन ब्राह्मणों को उपवास कराया है उनका पूजन करे और उनको भोजन कराएं
भोजन के बाद ब्राह्मणों को वस्त्र उपहार दक्षिणा आदि अर्पण करें चरण स्पर्श और क्षमा प्रार्थना करे
कर्म कांड करने वाले पुरोहित को दक्षिणा वस्त्र भेट कर चरण छुए और आशीर्वाद ले इस प्रकार एकादशी के व्रत की शास्त्रोक्त विधि से एकादशी उद्यापन करे