गौरी पूजा व्रत

गौरी पूजा आषाढ़ मास में शुक्ल पक्ष में किया जाता है इस व्रत को कुँवारी कन्या मन चाहा वर प्राप्त करने के लिए आषाढ़ मास में शुक्ल पक्ष में एकादशी से पूर्णिमा तक गौरी पुजन किया जाता है माता सीता ने गौरी पूजन व्रत कर भगवान राम को वर रूप में प्राप्त किया जिसका उल्लेख राम चरित मानस में मिलता है

भगवान शिव और माता पार्वती भक्ति के लिए यूं तो सभी दिन और महीने महत्वपूर्ण है लेकिन, सावन के महीने का विशेष महत्व है। सावन का महीने पूरी तरह से भगवान शिव की भक्ति के लिए ही समर्पित है। सावन के महीने में पड़ने वाले मंगलवार का भी विशेष महत्व है। मान्यताओं के अनुसार, मंगला गौरी व्रत सावन के प्रत्येक मंगलवार को मनाया जाता है। कहा जाता है कि माता पार्वती ने भगवान शिव को पाने के लिए कई व्रत रखे थे। उन्हीं में से एक व्रत है मंगला गौरी व्रत। विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र की कामना करके इस व्रत को रखती हैं।

विधि

पहले भगवान गणेश जी का आहवान करे सुपारी में मोली लपेटकर गणेश जी की स्थापना करे आहवान करे स्नान कराएं पंचामृत से स्नान कराएं वस्त्र आदि भेट कर चन्दन पुष्प जनेऊ अक्षत अर्पण कर भोग धूप दीप नैवेध अर्पण करें

गौरी पूजा

पहले गौरी माँ का आहवान करे आसन स्नान पन्चामृत स्नान फूल फल नैवैद्य आदि से पूजन करे स्तुति करे

गौरी स्तुति,,

सर्वमंगल मांगल्ये, शिवे सर्वार्थ साधिके. शरणनेताम्बिके गौरी नारायणी नमोस्तुते..

गौरी-पूजन

जय जय गिरिबरराज किशोरी।

जय महेस मुख चंद  चकोरी ।।,

जय गजबदन सडानन माता ।

जगत जननि दामिनी दुति गाता ।।

नहिं तब आदि मध्य अवसाना ।

अमित प्रभाउ बेदु नहीं जाना ।।

भव भव विभव पराभव कारिनि ।

बिस्व बिमोहिनी स्वबस बिहारिनी ।।

मोर  मनोरथ   जानहु     निकें  ।

बसहु सदा उर पुर सबही     कें  ।।

कीन्हेऊँ प्रगट न कारन तेहीं ।

अस कहि चरन गहे बैदेहीं  ।।

बिनय प्रेम  बस भई भवानी ।

खसी माल मूरति मुस्कानी ।।

सादर सिंय प्रसादु सिर धरेउ ।

बोली गौरि हरषु हिय भरेऊ । ।

सुनु सिय सत्य असीस हमारी ।

पूजिहि मन कामना  तुम्हारी ।।

एहि भांति गौरि असीस सुनि

सिय सहित हिय हरषी अली ।

तुलसी भवानिहि पूजि पुनि पुनि

मुदित मन मंदिर चली ।

अंत में हाथ पुष्प लेकर पुष्पांजलि करें क्षमा प्रार्थना करें

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