गोवर्धन पूजा – Govardhan Puja

क्यों की जाती है गोवर्धन पूजा

पहले बृज में इंद्र का पूजन होता था सभी बृज वासी इन्द्र पूजन करते लेकिन 7 वर्ष के भगवान कृष्ण ने इंद्र पूजा को बंद करवा कर गोवर्धन पूजन कराया जब इन्द्र पूजा बन्द हुई तो इन्द्र नाराज़ हो गया बृज वासियो पर कोप किया और प्रलयकारी मेघ मालाओ को बृज को बहाने का आदेश दिया मेघ माला बृज पर मूसलधार वर्षा करने लगे भगवान कृष्ण ने ब्रजवासियों को मूसलधार वर्षा से बचाने के लिए सात दिन तक गोवर्धन पर्वत को अपनी सबसे छोटी उँगली पर उठाकर रखा और गोप-गोपिकाएँ गाय बछड़े सभी बृज वासी उसकी छाया में सुखपूर्वक रहे। सातवें दिन भगवान ने गोवर्धन को नीचे रखा और प्रतिवर्ष गोवर्धन पूजा करके अन्नकूट उत्सव मनाने की आज्ञा दी। तभी से यह उत्सव अन्नकूट के नाम से मनाया जाने लगा।

विधि

दीपावली के अगले दिन कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को अन्नकूट उत्सव मनाया जाता है। अन्नकूट/गोवर्धन पूजा भगवान श्रीकृष्ण के अवतार के बाद द्वापर युग से प्रारंभ हुई। यह ब्रजवासियों का मुख्य त्योहार है। इस दिन मंदिरों में विविध प्रकार की खाद्य सामग्रियों से भगवान को भोग लगाया जाता है। गोवर्धन पूजा की विधि-सबसे पहले घर के आंगन में गोबर से गोवर्धन का चित्र बनाएं।इसके बाद रोली, चावल, खीर, बताशे, जल, दूध, पान, केसर, फूल और दीपक जलाकर गोवर्धन भगवान की पूजा करें। कहा जाता है कि इस दिन विधि विधान से सच्चे दिल से गोवर्धन भगवान की पूजा करने से सालभर भगवान श्री कृष्ण की कृपा बनी रहती है।

प्रभावि मन्त्र

 ऊँ कृष्णाय  वासुदेवाय हरये परमात्मने ।। प्रणत : क्लेशनाशाय गोविंदाय नमो नम:

आरती

ॐ जय जय जय गिरिराज, स्वामी जय जय जय गिरिराज ।
संकट में तुम राखौ, निज भक्तन की लाज ॥
ॐ जय जय जय गिरिराज…
ॐ जय जय जय गिरिराज, स्वामी जय जय जय गिरिराज ।
संकट में तुम राखौ, निज भक्तन की लाज ॥
ॐ जय जय जय गिरिराज…

इन्द्रादिक सब सुर, मिलतुम्हरौं ध्यान धरैं ।
स्वामी तुम्हरो ध्यान धरे 
ऋषि मुनिजन यश गावें, ते भवसिन्धु तरैं ॥
ॐ जय जय जय गिरिराज…

सुन्दर रूप तुम्हारौ, श्याम सिला सोहें ।
स्वामी  श्याम सिला सोहें
वन उपवन लखि-लखि, के भक्तन मन मोहें ॥
ॐ जय जय जय गिरिराज…

मध्य मानसी, गङ्गाकलि के मल हरनी ।
स्वामी के मल हरनी
तापै दीप जलावें, उतरें वैतरनी ॥
ॐ जय जय जय गिरिराज…

नवल अप्सरा कुण्ड, सुहावन – पावन सुखकारी ।
स्वामी पावन सुखकारी
बायें राधा – कुण्ड, नहावेंमहा पापहारी ॥
ॐ जय जय जय गिरिराज…

तुम्ही मुक्ति के दाता, कलियुग के स्वामी ।
कलियुग के स्वामी
दीनन के हो रक्षक, प्रभु अन्तरयामी ॥
ॐ जय जय जय गिरिराज…

हम हैं शरण तुम्हारी, गिरिवर गिरधारी ।
स्वामी गिरिवर गिरधारी 
देवकी नंदन कृपा करो, हे भक्तन हितकारी ॥
ॐ जय जय जय गिरिराज…

जो नर दे परिकम्मा पूजन पाठ करें ।
स्वामी  पूजन पाठ करें
गावें नित्य आरतीपुनि नहिं जनम धरें ॥
ॐ जय जय जय गिरिराज…

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