गुरु शान्ति के लिए उपाय
गुरू (बृहस्पति) कुण्डली में 4, 6, 8, 12 वें भावों में ही स्थित हो, अथवा नीच राशिगत (मकर) हो, या शत्रु या अशुभ ग्रहों से दृष्ट या युक्त ग्रह जातक को अशुभ प्रभाव प्रदान करता है। अशुभ गुरू जातक को विद्या में असफलता अथवा विवाह सुख में अड़चनें, पुत्र- सन्तान एवं स्त्री कष्ट, भ्रातृ विरोध, शरीर कष्ट, बुद्धि में विकार आदि अशुभ फल प्रकट करता है। गुरु में शुभता लाने के लिए निम्नलिखित किसी एक मन्त्र का 11,000 की संख्या में पाठ करना अथवा किसी योग्य ब्राह्मण से करवाना तथा पाठोपरान्त दशांश संख्या में हवन करना कल्याणकारी रहेगा।
तन्त्रोक्त गुरू मन्त्र – ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौ सः गुरवे नमः (जप संख्या 11000 )
पुराणोक्त गुरू मन्त्र –
ॐ देवानां च ऋषीणां च गुरुं का-चन संन्निभम् । बुद्धिभूतं त्रिलोकेशं तं नमामि बृहस्पतिम् ।।
गुरु गायत्री मन्त्र –
ॐ अंगिरो जाताय विद्महे वाचस्पतये धीमहि तन्नो गुरुः प्रचोदयात् ॥
संकल्पपूर्वक मन्त्र जाप के अतिरिक्त गुरू सम्बन्धी वस्तुओं का दान, सुवर्ण या चांदी की अँगूठी में पुखराज पहनना, विधिवत् निर्मित गुरू यन्त्र धारण, औषधि स्नान करना, गुरूवार का व्रत रखना, पीली वस्तुओं का प्रयोग, पीले वर्ण की गौओं की सेवा करना व गाय दान, पीपल वृक्ष की प्रतिष्ठा, ब्राह्मणों को क्षीर सहित भोजन खिलाना, दक्षिणा एवं धार्मिक ग्रन्थों का दान, गायत्री जप इत्यादि करना शुभ है। गुरू की दान योग्य वस्तुएँ पीले चावल, चने की दाल, हल्दी, शहद, पीला वस्त्र, पपीता,आम, केले आदि पीले फल, सवत्सा गाय, पीला कम्बल, बेसन के लड्डू, ताम्र एवं कांस्य पात्र,शक्कर, रामायण आदि धार्मिक ग्रंथ केशर इत्यादि वस्तुओं का दान शुभ रहता है।
उपाय-
- जन्म कुंडली में बृहस्पति शुभ व योगकारक होता हुआ भी शुभ फल प्रकट न कर रहा हो तो निम्नलिखित उपाय करें-
- सोने या चांदी की अंगूठी में तर्जनी अंगुली में तथा शुभ मुहूर्त्त में पुखराज धारण करें।
- 27 गुरुवार केसर का तिलक लगाना तथा केसर की पुड़िया पीले रंग के कपड़े या
- कागज़ में अपने पास रखना शुभ होगा। गुरु के अशुभ प्रभाव के निवारण हेतु निम्नलिखित उपाय करें-
- चलते पानी में बादाम एवं नारियल पीले कपड़े में लपेटकर बहाना शुभ होगा।
- पीपल के वृक्ष को गुरुवार एवं शनिवार को गुरु का बीज मन्त्र एवं गुरु गायत्री मन्त्र पढ़ते हुए जल दें।
- पीले वस्त्रों,का दान ब्राह्मण को करना चाहिए
- वृद्ध ब्राह्मण को यथाशक्ति पीली वस्तुएँ, जैसे-चने की दाल, लड्डू, शहदादि का दान करना चाहिए।
गुरु-रत्न पुखराज (TOPAZ)
पुखराज गुरु (बृहस्पति) ग्रह का मुख्य रत्न है। संस्कृत में इसे पुष्प राजा, हिन्दी में पुखराज, व अंग्रेजी में टोपाज (Topaz) कहते हैं।
पहचान विधि-
जो पुखराज स्पर्श में चिकना, हाथ में लेने पर कुछ भारी लगे, पारदर्शी, विषैला व्रण, बच्चों में सूखा रोग, मानसिक प्राकृतिक चमक से युक्त हो वह उत्तम कोटि का माना जाता है।
पहचान
जहां किसी विषैले कीड़े ने काटा हो, वहां पर असली पुखराज घिस कर लगाने से विष उतर जाता है।
चौबीस घण्टे कच्चे दूध में रखने के बाद यदि चमक में अन्तर न पड़े तो पुखराज असली होगा
गुण-
पुखराज धारण करने से बल, बुद्धि, स्वास्थ्य एवं आयु की वृद्धि होती है। वैवाहिक सुख पुत्र सन्तान कारक एव धर्म कर्म में प्रेरक होता ह प्रेत बाधा का निवारण एव स्त्री के विवाह सुख की बाधा को दूर करने में सहायक होता है।
औषधी प्रयोग-
इसको वैद्य के परामर्शानुसार केवड़ा एवं शहदादि के साथ देने से पीलिया, तिल्ली, पाण्डु रोग, खांसी, दन्त रोग, मुख की दुर्गन्ध, बवासीर, मन्दाग्नि, पित्त-ज्वरादि में लाभदायक होता है।
धारण विधि-
पुखराज रत्न 3, 5, 7, 9 या 12 रत्ति के वजन का सोने की अंगूठी में जड़वा कर तर्जनी अंगुली में धारण करें, सुवर्ण या ताम्र बर्तन में कच्चा दूध, गंगाजल, पीले पुष्पों से एवं” ॐ ऐं क्लीं बृहस्पतये नमः” के बीज मन्त्र द्वारा अभिमन्त्रित करके धारण करना चाहिए।
यह नव शुक्ल पक्ष के गुरुवार की होरा में अथवा गुरु पुष्य योग में भैया पुनर्वसु विशाखा पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र में धारण करना चाहिए पुखराज धनु मीन राशि के अतिरिक्त मेष कर्क वृश्चिक राशि वालों को लाभप्रद रहता है धारण करने के पश्चात गुरु से संबंधित वस्तुओं का दान करें गुरु का उपरत्न सुनहला इसे पुखराज का उपरत्न माना जाता है पुखराज मूल्यवान होने के कारण सुनेला को उसके पूरक के रूप में धारण किया जा सकता है श्रेष्ठ शुमैला हल्के पीले रंग सरसों के जैसा पीलापन का होता है कई बार पुखराज से अधिक पीलापन लिए होता है तथा आवश्यक मात्रा में पुखराज के समान ही उपयोगी होता है धारण विधि पुखराज के समान ही होगी