क्षेत्रपाल कोन होता है और इसकी पूजा क्यों कि जाती है

क्षेत्रपाल भी भगवान भैरवनाथ की तरह दिखाई देते हैं संभवत: इसीलिए बहुत से लोग क्षेत्रपाल को कालभैरव का एक रूप मानते हैं। लोक जीवन में भगवान कालभैरव को क्षेत्रपाल बाबा, खेतल, खंडोवा, भैरू महाराज, भैरू बाबा आदि नामों से जाना जाता है। अनेक समाजों के ये कुल देवता हैं।

क्षेत्रपाल क्षेत्र विशेष के एक देवता होते हैं जिनके अधिन उक्त क्षेत्र की आत्माएं रहती हैं। भारत के अधिकतर गांवों में भैरवनाथ, खेड़ापति (हनुमानजी), सतीमाई, कालीमाई, सीतलामाई और क्षेत्रपाल आदि के मंदिर होते हैं। यह सभी ग्राम देवता होते हैं और सभी के अलग-अलग कार्य माने गए हैं।

क्षेत्रपाल भी भगवान भैरवनाथ की तरह दिखाई देते हैं संभवत: इसीलिए बहुत से लोग क्षेत्रपाल को कालभैरव का एक रूप मानते हैं। लोक जीवन में भगवान कालभैरव को क्षेत्रपाल बाबा, खेतल, खंडोवा, भैरू महाराज, भैरू बाबा आदि नामों से जाना जाता है। अनेक समाजों के ये कुल देवता हैं।

क्षेत्रपाल बलि

एक मिट्टी का बडा दीपक ( सराई ) लेकर उसमें चार मुंह की ज्योत लगावें । दीपक में सरसों का तेल डालें . उसमें सिन्दूर , उडद , पापड , दही , गुड , सुपारी आदि रखकर दीप प्रज्वलित करें और क्षेत्रपाल का आवाहन करें ।

ॐ क्षेत्रपालाय शाकिनी डाकिनी भूतप्रेत बेताल पिशाच सहिताय इमं बलिं समर्पयामि । भो क्षेत्रपाल : दिशो रक्ष बलिं भक्ष मम यजमानस्य सकुटुम्बस्य सपरिवारस्य आयु : कर्ता शांतिकर्ता तुष्टिकर्ता पुष्टिकर्ता वरदो भव : ।

ॐ ह्नीं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरु कुरु बटुकाय ह्नीं ॐ ।ॐ क्षेत्रपालाय नम : । इति पंचोपचारै : संपूज्य । प्राथयेत्

ॐ नमो वै क्षेत्रपालस्त्वं भूतप्रेत , गणै : सह । पूजाबलिं गृहाणेमं सौम्यो भवतु सर्वदा ॥

पुत्रान् देहि धनं देहि सर्वान् कामांश्च देहि में । देहि में आयुरारोग्यं निर्विघ्नं कुरु सर्वदा न : ॥

अब इस दीपक को उठाकर यजमान की तरफ आवृत कर बिना पीछे मुडे बाहर दीपक को चौराहे पर रखावें । ब्राह्मण शांतिपाठ करें । ब्रह्मा जी द्वार तक जल छोडें दीपक को रखकर आने वाला व्यक्ति नहाकर या हाथ पैर धोकर आवे ।

पूर्णाहुति

स्त्रुवे से नारियल के गोले में घी भरकर रोली , मोली लगाकर उस पर एक सुपारी रख देवे । नारियल के मुख को सम्मुख करके पूर्णाहुति देवें ।

पहले ” पूर्वाहुत्यां मृडनाम्ने वैश्वानराय ” इदं गन्द्य , पुष्पं , धूपं नैवेद्यं आचमनीय से पंचोपचार पूजन करें ।

पीछे ” एकोनपंचाशद् मरुद्‌गणेभ्यो नम : ” से नारियल पर मरुद्‌गणों की पूजा करें । फिर विनियोग करके पूर्णाहुति मन्त्रों से पूर्णाहुति करें ।

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