• केतु शान्ति के लिए उपाय
केतु कुण्डली में 1 ,2, 4, 5 7, 8 एवं 12 वें भाव में हो, अथवा अशुभ ग्रह से युक्त या दृष्ट हो या नीच राशिगत हो तो जातक/जातिका को शरीर कष्ट, आपसी कलह, व्यवसाय में हानि, घरेलू उलझनों आदि का सामना रहता है। केतु कृत अरिष्ट फल निवारण हेतु निम्नलिखित किसी एक मन्त्र का 17 हजार की संख्या में जाप करना लाभदायक रहता है-
तन्त्रोक्त केतु मन्त्र – ॐ त्रां स्त्रीं स्रौं सः केतवे नमः
केतु गायत्री मन्त्र – ॐ पद्म पुत्राय विद्महे अमृतेशाय धीमहि तन्नो केतु प्रचोदयात् ॥
सुनिश्चित मन्त्र जाप के अतिरिक्त केतु से सम्बन्धित वस्तुओं का दान, दुर्गा व गणेश जी की उपासना, कुत्तों को दूध चपाती डालना, गर्म वस्त्र (कम्बलादि) का दान, केतु औषधि स्नान, अन्ध विद्यालय या कुष्ट आश्रम में अनाज, दवाईयों, वस्त्रादि का दान, पक्षियों को सतनाजा डालना तथा केतु यन्त्र धारण करना कल्याणकारी रहता है।
केतु-दान योग्य, वस्तुएं-लहसुनिया, लोहा, बकरा, नारियल, तिल, सप्तधान्य, धूम (धुएँ जैसे) वर्ण का वस्त्र, कस्तूरी, लौह, चाकू, कपिला गाय, दक्षिणा सहित। केतु का दान रात्रि कालीन प्रशस्त माना जाता है।
उपाय – (1) केतु की शान्ति के लिए श्री गणेश चतुर्थी का व्रत रखें तथा श्रीगणेश पूजन
। तथा लड्डुओं का भोग लगाना शुभ होगा।
(2) काले वस्त्र में बाँधकर काले व सफेद तिल चलते पानी में बहाना
(3) रंग-बिरंगी (चितकबरी) गाय की सेवा करना एवं रंग-बिरंगे कुत्ते को दूध व चापाती (Bread) डालना।
| केतु रत्न लहसनिया (CAT’S EYE STONE)
केतु-रत्न लहसनिया को संस्कृत में वैदूर्य, हिन्दी में लहसनिया, अंग्रेजी में Cat’s eye Stone कहते हैं। यह नग अन्धेरे में बिल्ली की आंखों के समान चमकता है। लहसनिया चार रंगों में पाया जाता है।
काली तथा श्वेत आभा युक्त लहसनिया जिस पर यज्ञोपवीत के समान तीन धारियां खिंची हों, वह वैदूर्य ही उत्तम होता है। पहचान–
- असली लहसनिया को यदि हड्डी के ऊपर रख दिया जाए तो वह 24 घण्टे के भीतर हड्डी के आर-पार छेद कर देता है।
- असली वैदूर्य में ढाई या तीन सफेद सूत्र होते हैं, जो बीच में इधर-उधर घूमते हिलते रहते हैं।
धारण विधि–
लहसनिया रत्न बुधवार के दिन अश्विनी, मघा, मूला नक्षत्रों में, रविपुष्य योग में। पंचधातु की अंगूठी में कनिष्ठका अंगुली में धारण करें। धारण करने से पूर्व केतु के बीज मन्त्र द्वारा अंगूठी अभिमन्त्रित करें। 5 रत्ती से कम वजन का नहीं होना चाहिए। प्रत्येक 3 वर्ष पश्चात् नई अंगूठी में। लहसनिया जड़वाकर उसे अभिमन्त्रित कर धारण करना चाहिए।
केतु बीज मन्त्र- “ॐ स्त्रां स्त्रीं स्त्रौं सः केतवे नमः’
रत्न धारण करने के पश्चात् बुधवार को ही किसी श्रेष्ठ ब्राह्मण को तिल, तेल, कम्बल, धूर्मवर्ण का वस्त्र, सप्तधान्य (अलग-अलग रूप में) यथाशक्ति दक्षिणा सहित दान करें। विधिपूर्वक लहसनिया धारण करने से भूत प्रेतादि की बाधा नहीं रहती है। सन्तान सुख, धन की वृद्धि एवं शत्रु व रोग नाश में सहायता प्रदान करता है।