कुम्भ विवाह एवं अर्क विवाह पूजा – Kumbh, Arak Vivaah Puja

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मांगलिक दोष

मंगल दोष जिस व्यक्ति की कुंडली में होता है वह मांगलिक कहलाता है। जब किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली के 1, 4, 7, 8, 12 वें स्थान या भाव में मंगल स्थित हो तो वह व्यक्ति मांगलिक होता है।

मंगल दोष के दुष्परिणाम

किसी की कुंडली में मंगल की स्थिति की गंभीरता के आधार पर, मंगल दोष के परिणाम स्वरूप विवाह में देरी , वैवाहिक जीवन में अनबन ,झगड़े और यहां तक ​​कि साथी का तलाक या मृत्यु भी हो सकती है।

कुम्भ विवाह क्या होता है.

जब कन्या के जन्म कुंडली में मंगल दोष के अनुसार ग्राहम योग, विधवा योग होता है तो उसके निवारण के लिए कुम्भ विवाह संस्कार किया जाता है। इस योग का जन्म संबंधित कन्या की जन्म कुंडली में होता है। यदि ऐसी कन्या कुम्भ विवाह किये बिना ही किसी वर से विवाह कर लेती है तो वो विधवा हो जाती है।

क्यो करे कुम्भ विवाह

कन्या की कुंडली मे मंगल दोष के निवारण के लिए कुम्भ विवाह कराया जाता है यदि मंगली कन्या का विवाह किसी ऐसे वर के साथ किया जाता है जिसकी कुंडली मे मंगल दोष न हो तो उस कन्या को वैद्यवय(विधवा) देखना पड़ता है

कैसे करे कुम्भ विवाह

इस रस्म में, पहले कन्या का विवाह मिट्टी के बर्तन में स्थापित भगवान विष्णु की मूर्ति के साथ किया जाता है। यह शादी सामान्य तरीके से की जाती है। इसमें दुल्हन का कन्यादान माता पिता के द्वारा किया जाता है पूरे विवाह समारोह के बाद, भगवान विष्णु की मूर्ति को जलाशय में विसर्जित कर दिया जाता है। इस प्रकार कुंभ (विवाह) विवाह समारोह संपन्न होता है।

वही यदि यह दोष किसी लड़के की कुंडली मे बनता है तो लड़के का अर्क विवाह करने से इस दोष की शुद्धि होती है

अर्क विवाह क्या है

पुरुषों के विवाह में आ रहे विलम्ब या अन्य दोषो को दूर करने के लिए किसी कन्या से विवाह से पूर्व उस पुरुष का विवाह सूर्य पुत्री जो की अर्क वृक्ष के रूप में विद्धमान है से करवा कर विवाह में आ रहे समस्त प्रकार के दोषो से मुक्ति प्राप्त की जा सकती है, इसी विवाह पद्द्ति को अर्क विवाह कहा जाता है।

इस प्रक्रिया से दाम्पत्य सुखों में वृद्धि होती है और वैवाहिक विलंब दूर होता है । इसी तरह किसी कन्या के जन्मांग इस तरह के दोष होने पर भगवान विष्णु के साथ व्याह कराया जाता है। इसलिए कुंभ विवाह क्योंकि कलश में विष्णु होते हैं। अश्वत्थ विवाह (पीपल पेड़ से विवाह)- गीता में लिखा श्वृक्षानाम् साक्षात अश्वत्थोहम्ं्य अर्थात वृक्षों में मैं पीपल का पेड़ हूं। विष्णु प्रतिमा विवाह- ये भगवान विष्णु की स्वर्ण प्रतिमा होती है, जिसका अग्नी उत्तारण कर प्रतिष्ठा पश्चात वैवाहिक प्रक्रिया संकल्प सहित पूरी करना, ऐसा शास्त्रमति है। मगर ध्यान रहे बहुत सारे विद्वान केले, तुलसी, बेर आदि के पेड़ से ये प्रक्रियाएं निष्पादित करते हैं जो कतई शास्त्रसम्मत नहीं हैं। अतः विद्वान यजमान, आचार्य की योग्यता को देखकर यह प्रक्रिया करवावें। क्यों कि यह जीवन में एक बार होती है। नांदीमुख श्राद्ध के साथ गौरी गणेश नवग्रह षोडष मातृका, कलश आदि की पूजा कर यह प्रक्रिया सम्पन्न कराएं।

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