लग्न पूजा – lagna puja

लग्न किसे कहते हैं

कुंडली के प्रथम भाव को लग्न कहकर ही संबोधित किया जाता है और लग्न भाव अर्थात कुंडली के प्रथम भाव में स्थित राशि का स्वामी लग्नेश कहलाता है। फलित ज्योतिष में लग्न भाव और लग्नेश की स्थिति को बड़ा ही महत्व पूर्ण माना गया है।

क्या है लग्न पूजा

हमारा जीवन ग्रह नक्षत्र लग्न राशि पर आधारित होता है जब बालक जन्म लेता है उसी समय से लग्न का बहुत बड़ा प्रभाव जीवन पर होता है लग्न में यदि क्रूर ग्रह हो तो जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं किसी भी शुभ कार्य को करने के लिए लग्न का शुभ होना आवश्यक होता है

हमारे सोलह षोडश संस्कारो मै चौदहवा संस्कार है विवाह संस्कार और विवाह संस्कार में शुद्ध लग्न का शोधन अत्यंत महत्वपूर्ण है और मानव जीवन का एक पवित्र बन्धन सृष्टि की निरंतर गतिविधि बनाये रखने के लिए आवश्यक भी है। 

लग्न का शोधन  

किसी जातक के विवाह का दिन सुनिश्चित करने के उपरान्त विवाह का लग्न निर्धारित किया जाता है। विवाह लग्न अर्थात् जिस समय पाणिग्रहण संस्कार सम्पन्न किया जाता है। विवाह में लग्न का विशेष महत्व होता है। शास्त्रो मे विवाह लग्न का निकल जाना एक गंभीर दोष माना गया है। 

लग्न शुद्धि हेतु निम्न बातों का ध्यान अवश्य रखना चाहिए-

वर-वधु की जन्मलग्न या जन्मराशि से अष्टम् राशि का लग्न विवाह लग्न नहीं होना चाहिए।

वर-वधु की जन्मपत्रिका का अष्टमेश विवाह लग्न में स्थित नहीं होना चाहिए।

विवाह लग्न से बारहवें स्थान में शनि व दसवें स्थान मंगल स्थित नहीं होना चाहिए।

विवाह लग्न से तीसरे स्थान में शुक्र व लग्न कोई पाप ग्रह स्थित नहीं होना चाहिए।

विवाह लग्न में क्षीण चन्द्र स्थित नहीं होना चाहिए।

विवाह लग्न से चन्द्र व शुक्र छठे एवं मंगल अष्टम् स्थान में स्थित नहीं होना चाहिए।

विवाह लग्न से सप्तम् स्थान में कोई भी ग्रह स्थित नहीं होना चाहिए।

विवाह लग्न कर्तरी दोष युक्त नहीं होना चाहिए अर्थात विवाह लग्न के द्वीतीय व द्वादश कोई पापग्रह स्थित नहीं होना चाहिए।

गोधूलि-लग्न’ की ग्राह्यता-

जब विवाह में पाणिग्रहण हेतु शुद्ध लग्न की प्राप्ति न हो तो ‘गोधूलि’ लग्न की ग्राह्यता शास्त्रानुसार बताई गई है। ‘गोधूलि लग्न’ सूर्यास्त से 12 मिनट पूर्व एवं पश्चात कुल 24 मिनट अर्थात 1 घड़ी की होती है, मतांतर से कुछ विद्वान से इसे सूर्यास्त से 24 मिनट पूर्व व पश्चात कुल 48 मिनट का मानते हैं। लेकिन शास्त्र का स्पष्ट निर्देश है कि ‘गोधूलि लग्न’ की ग्राह्यता केवल आपात परिस्थिति में ही होती है। जहां तक संभव हो, शुद्ध लग्न को ही प्राथमिकता देना चाहिए।

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