क्यों करे महामृत्युंजय जप
यदि घर परिवार में कोई व्यक्ति असाध्य रोग से पीड़ित हो इलाज करवाने पर भी आराम ना मिल रहा हो मृत्यु शैया पर लेटे व्यक्ति को जीवन दान दे सकती या काम मे बाधा आ रही हो कोई भी काम नही बनता हो शत्रु का भय हो लक्ष्मी रूठ गई हो तो ऐसी परिस्थिति में महामृत्युंजय अनुष्ठान कराने से बहुत लाभ मिलता है
महा मृत्युंजय मंत्र एवं जप संख्या
।।ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् ।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्।।
इस मन्त्र का रुद्राक्ष की माला से 125000 की संख्या में जप होता है
महामृत्युंजय मन्त्र के नियम
महामृत्युंजय का अनुष्ठान हमे किसी कुशल ब्राह्मण के द्वारा की कराना ही उत्तम होता है
यह मन्त्र अत्यंत प्रभावशाली है इस मंत्र के जाप अनुष्ठान में साधक को अत्यंत सावधानी एवं सात्विक पवित्र रहने के साथ नियम पूर्वक रहना होता है
मंत्र का जप शुभ मुहूर्त में प्रारंभ करना चाहिए जैसे महाशिवरात्रि, श्रावणी सोमवार, प्रदोष (सोम प्रदोष अधिक शुभ है), सर्वार्थ या अमृत सिद्धि योग, मासिक शिवरात्रि (कृष्ण पक्ष चतुर्दशी) अथवा अति आवश्यक होने पर शुभ लाभ या अमृत चौघड़िया में किसी भी दिन
जिस जातक के हेतु इस मंत्र का प्रयोग करना हो, उसके लिए शुक्ल पक्ष में चंद्र शुभ तथा कृष्ण पक्ष में तारा (नक्षत्र) बलवान होना चाहिए।
जप के लिए साधक या ब्राह्मण को कुश या कंबल के आसन पर पूर्व या उत्तर दिशा में मुख करके बैठना चाहिए।
महामृत्युंजय मंत्र की जप संख्या की गणना के लिए रुद्राक्ष की माला का प्रयोग करना चाहिए।
मंत्र जप करते समय माला गौमुखी के अंदर रखनी चाहिए।
महामृत्युंजय मंत्र का जाप और हवन
श्री महामृत्युंजय मंत्र वह मंत्र है जो व्यक्ति की ओर आने वाली मृत्यु पर भी विजय प्राप्त कर सकता है इसलिए महामृत्युंजय पूजा उस व्यक्ति के लिए की जाती है जो गंभीर बीमारी से पीड़ित हो।
महामृत्युंजय मंत्र का जाप रुद्राक्ष की माला से किया जाता है। संकट की स्थिति में शिवलिंग के सामने या भगवान शिव की मूर्ति के सामने रुद्राक्ष की माला से इस मंत्र का जाप और हवन करना बहुत फलदायी होता है।
महामृत्युंजय मंत्र का जाप कम से कम 108 बार और अधिकतम सवा लाख 125000 बार किया जाना चाहिए। जप करने वाले व्यक्ति को एक बार में एक माला, 108 जाप पूरे करने चाहिए। इसके बाद सुमेरु से माला पलटकर पुनः जाप आरंभ करना चाहिए। किसी भी परिस्थिति में माला का सुमेरु लांघना नहीं चाहिए।
सावन शिव जी का प्रिय महीना है और महा मृत्युंजय मंत्र भोलेनाथ को प्रसन्न करने का आसान तरीका है इसलिए सावन में इस मंत्र का जाप और हवन जरूर करना चाहिए। सावन में इसका जप और हवन करने से मनचाहा वरदान प्राप्त होता है।
महा मृत्युंजय हवन और मंत्र जाप हमेशा शुभ मुहूर्त जैसे महाशिवरात्रि, श्रावणी सोमवार, प्रदोष या कृष्ण पक्ष के सोमवार से शुरू करने चाहिए। इसके दसवा अंश हवन होना अनिवार्य होता है
महामृत्युंजय के लाभ
आपके जीवन के सभी बुरे प्रभावों को खत्म कर देता है।
अस्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य में सुधार करता है।
यह आपके और आपके परिवार के चारों ओर सुरक्षा कवच की तरह कार्य करता है।
आपके पारिवारिक जीवन में खुशियाँ लाता है।
ना केवल इस जीवन बल्कि अतीत से जुड़े हुए सभी पापों को भी समाप्त कर देता है।
यह पूजा अनेक दोषों जैसे नाड़ी दोष, भकूट दोष आदि दोषों को दूर करने के लिए की जाती है।
भगवान शिव अपने महाकाल रूप में श्री महामृत्युंजय मंत्र के देवता है जो हर जीवित प्राणी की मृत्यु को नियंत्रित करते है। जातक अप्राकृतिक या अकाल मृत्यु से बचने के लिए महा मृत्युंजय हवन पूजा करते है।
जो व्यक्ति नकारात्मक घटनाओं से डरता है, डर से हार जाता है, उसे अपने डर और भय से जीतने के लिए महामृत्युंजय हवन पूजा जरूर करनी चाहिए। यज्ञ हवन ना केवल आपके मन को बल्कि आपकी आत्मा को भी असीम शांति देते है।