मूल क्या है
वैदिक ज्योतिष के अनुसार जब किसी शिशु का जन्म गण्डमूल नक्षत्र में हो तो इसको गंडमूल दोष कहा जाता है। इसके कारण बालक और उसके माता-पिता एवं भाई-बहिनों के जीवन पर कष्टकारी प्रभाव पड़ता है इसलिए इस नक्षत्र में पैदा हुए शिशु और उसके परिजनों की भलाई के लिए गंडमूल शांति के उपाय कराना अति आवश्यक है।
मूल कैसे बनता है
ज्योतिष में कुल मिलाकर 27 नक्षत्र बताए गए हैं। हर ग्रह की तरह चंद्रमा भी परिक्रमा करता है और इस दौरान जिन 27 सितारों के समूह के बीच से चंद्रमा गुजरता है वही अलग अलग 27 नक्षत्र के नाम से जाने जाते हैं।
जब किसी का जन्म होता है तो उस समय चंद्रमा जिस तारा समूह से होकर गुजरता है, वहीं उस जातक का जन्म नक्षत्र माना जाता है। इन नक्षत्रों के अलग-अलग फल और अलग-अलग स्वभाव बताए गए हैं। इन नक्षत्रों में से कुछ कोमल, कुछ कठोर और कुछ उग्र होते हैं। इन्हीं जन्म नक्षत्रों के आधार पर जातक के भविष्य के बारे में बताया जाता है। उग्र और तीक्ष्ण स्वभाव वाले नक्षत्रों को मूल नक्षत्र, सतईसा या गंडात कहा जाता है।
जिस नक्षत्र में बालक का जन्म हो उस नक्षत्र के जाप किसी योग्य ब्राह्मण से करवाना चाहिए
मूल नक्षत्र पूजा के लाभ-
शिशु के आने वाले जीवन के लिए और उसके अच्छे स्वास्थय के लिए मूल नक्षत्रों को शांत करवाना आवश्यक होता है। मूल शांति करवाने से इसके कारण लगने वाले दुष्परिणाम समाप्त होते हैं। गंड मूल पूजा करवाने से मूल नक्षत्र शुभफलदायक हो जाते हैं।
मूल के नक्षत्र
मूल,
ज्येष्ठा,
आश्लेषा,
आश्विन,
मघा
रेवती
ये 6 मूल नक्षत्र कहलाते हैं और जब इनमें से किसी एक नक्षत्र में बच्चे का जन्म होता है तो स्वास्थ्य थोड़ा संवेदनशील होता है। मान्यता है कि अगर बच्चे ने इन नक्षत्र में जन्म लिया है तो पिता को तब तक बच्चे का मुख नहीं देखना चाहिए, जब तक उसके मूल को शांत नहीं करवा लिए जाते
उपाय
मूल नक्षत्र के अशुभ प्रभाव को कम करने के लिए बच्चे के जन्म के सत्ताईस दिन बाद मूल नक्षत्र की शांति करवाना चाहिए। इसके साथ ही जब तक बच्चे की उम्र आठ साल न हो जाए उसके माता-पिता को ओम नम: शिवाय का जाप करना चाहिए। मूल नक्षत्र के कारण बच्चे के स्वास्थ्य पर संकट हो तो बच्चे की माता को पूर्णिमा का उपवास रखना चाहिए।
विधि एवं सामग्री
तारो की छाव में माँ और बालक को औषधि डालकर स्नान कराना चाहिए उसके बाद पूजा में बालक को गोद मे लेकर बालक का मोह ढक कर बैठना चाहिए
अथ मूल शांति पूजन विधि प्रारम्भ- ॐ देवस्य त्वा सवितुः प्रसवेऽश्विनोर्बाहुभ्यां पूष्णो हस्ताभ्यम् । सरस्वत्यै वाचो यन्तुर्यन्त्रिये दधामि बृहस्पतेष्टवा साम्राज्येनाभिषिञ्चाम्यसौ । ॐ देवस्य त्वा सवितुः प्रसवेऽश्विनोर्बाहुभ्यां पूष्णो हस्ताभ्याम्
- 27 गाँव के कंकड़
- 27 पेड़ो की छाल
- 27 कुओ का पानी
- 7 जगह की मिट्टी (गाय,हाथी,घुड़शाल,सर्प की बाम्बी, तालाब,चौक,तीर्थ)
- गंगा जल
- जमना जल
- हरनंद जल
- हल
- समुद्री झाग
- मूल शांति औषधि
- धूप दीप
- मूल मुलनी चांदी के
- सतनजा सवाया
- सवाया सरसो का तेल
- 7 लोहे की कील