नारायण बलि पूजा कब करनी चाहिए?
नारायणबलि पौष तथा माघा महीने में तथा गुरु, शुक्र के अस्त होने पर नहीं किए जाने चाहिए. लेकिन प्रमुख ग्रंथ निर्णण सिंधु के मतानुसार इस कर्म के लिए केवल नक्षत्रों के गुण व दोष देखना ही उचित है. नारायण बलि कर्म के लिए धनिष्ठा पंचक और त्रिपाद नक्षत्र को निषिद्ध माना गया है.
नारायण बलि क्यों कराया जाता है?
नारायण बलि को पितृदोष प्रेत बाधा एवं खोये हुए व्यक्ति की मृतक देह ना मिलने पर अंत्येष्टि क्रिया सर्प की हत्या का निवारण आदि के लिए नारायण बलि अनुष्ठान किया जाता है
क्यों किया जाता है नारायण बलि अनुष्ठान
नारायण बलि की जाने वाली महत्वपूर्ण पूजाओं में से एक शांति पूजा है, जो पित्रों की आत्मा की शांति के लिए की जाती है। नारायण नागबली पूजा दो पूजाओं का एकत्रित रूप है जिसमें नारायण बली पूजा एवं नागबली पूजा सम्मिलित है। नारायण बली पूजा का मुख्य उद्देश्य है पितृ दोष से मुक्ति दिलवाना। जब किसी व्यक्ति के परिवार में से किसी व्यक्ति की अकाल मृत्यु होती है तो उसकी आत्मा को शांति नहीं मिलती; जैसे
- अकाल मृत्यु,
- दुर्घटना से मृत्यु,
- अग्नि द्वारा जलकर मृत्यु,
- आत्महत्या (सुसाइड),
- हत्या,
- पानी में डूबने से मृत्यु
- प्राकृतिक आपदा जैसे सुनामी या भूकंप,
- महामारी जैसे कोरोना आदि
इन परिस्थियों में व्यक्ति की इच्छाएँ अधूरी रहती है। नारायण नागबली पूजा के माध्यम से उस व्यक्ति की आत्मा को शांति मिलती है। अपने कर्मों के अनुरूप उन्हें अगला जन्म या मोक्ष की प्राप्ति होती है।
नारायण बलि में कितने पिंड बनते हैं?
भगवान विष्णु , भगवान ब्रह्मा , भगवान शंकर के निमित्त तीन पिंड बनाकर उनका पूजन कर , उनके निमित्त तर्पण आदि कर सभी प्रकार की दुर्गति को प्राप्त पूर्वजों की आत्माओं की सद्गति, उनके उध्दार के लिए प्रार्थना की जाती है , इसलिए इस कर्म को ” त्रिपिंडी श्राध्द ” अर्थान तीन पिंड बनाकर किया गया श्राध्द कर्म भी कहा जाता है !!
नारायण बलि के लाभ
पितृ दोष या पितृ शाप को मिटाने के लिए ( पूर्वजो के असंतुष्ट इच्छाओ को पूरा करने के लिए) नारायण बली पूजा करते है, तथा साँप को मारने प्रेत बाधा का निवारण आदि के पाप से छुटकारा पाने के लिए नागबली पूजा की जाती है। इस पूजा प्रक्रिया में, गेहूं के आटे से बने साँप के शरीर पर अंतिम संस्कार किया जाता है।
नारायण नागबली पूजा नियम:
1, नारायण नागबली पूजा पति एवं पत्नी के साथ मिलकर करने से व्यक्ति के धन संबंधी समस्याओं का निवारण होता है तथा वंश वृद्धि, कार्य में यश एवं कर्ज से मुक्ति भी मिलती है।
2 व्यक्ति की शादी न होने पर या पत्नी की जीवित न होने पर भी कुल एवं वंश के उद्धार के लिए भी नारायण नागबली पूजा की जाती है।
3 गर्भवती महिला गर्भ धारण से आगे पांचवे महीने तक ही नारायण नागबली पूजा कर सकती है।
4 घर-परिवार में यदि कोई मांगलिक कार्य जैसे विवाह विधि, नामकरण विधि हो तो यह पूजा एक साल के बाद की जाती है।
5 यदि घर में किसी व्यक्ति की अकाल मृत्यु होती हैया मृतक व्यक्ति का शव प्राप्त नही होता तो उस व्यक्ति के अंतेष्टि क्रियाएं की जाती है
6 इस पूजा का अनुष्ठान महिला अकेले नहीं कर सकती।
7 अगर परिवार का कोई व्यक्ति लापता हुआ है तो उसका एक माह, तीन माह, एक वर्ष या तीन वर्षों तक इंतज़ार किया जा है उस लापता व्यक्ति को मृत नहीं माना जा सकता। किन्तु इस अवधि में अगर वह व्यक्ति लौटकर नहीं आए तब नारायण नागबली पूजा के माध्यम से उसे प्रेत योनि से मुक्त करना हमारा कर्तव्य है, और यही शास्त्रों का विधान है।