मां ने महाकाली के रूप में राक्षसों का संहार किया, जिसका वर्णन मार्कंडेय पुराण में श्री दुर्गा सप्तशती नामक गंथ में वर्णित है। श्री दुर्गा सप्तशती के पाठ को 108 बार करने को शतचंडीपाठ महायज्ञ कहा जाता है, पाठ को 1000 बार करने को सहस्रचंडी महायज्ञ कहा जाता है और पाठ को एक लाख बार करने पर लक्ष्यचंडी महायज्ञ कहा
सावधानी
इस विधि को करने वाले साधक को ध्यान रहे कि शक्ति की आराधना में किसी भी प्रकार की कमी त्रुटि न रहने पाए। अत्यंत सावधानी पूर्वक से अनुष्ठान किया जाता है शुद्धता सात्विकता ब्रह्मचर्य आदि का पालन अनिवार्य होता है
शतचंडी यज्ञ की कथा
अत्याचार से सकल चराचर जगत में त्राहि-त्राहि मच रही थी, तभी बह्मा, विष्णु महेश की उपासना से महा शक्ति के रूप में जगत जननी मां दुर्गा जी प्रकट हुईं और मां दुर्गा जी इस उपासना से प्रसन्न हुईं और देवताओं से वरदान मांगने को कहा। तभी देवताओं ने राक्षसों से पृथ्वी को भय मुक्त कराने के लिए मां दुर्गा जी से आग्रह किया। मां ने महाकाली के रूप में राक्षसों का संहार किया, जिसका वर्णन मार्कंडेय पुराण में श्री दुर्गा सप्तशती नामक ग्रन्थ में वर्णित है। श्री दुर्गा सप्तशती के पाठ को 108 बार करने को शतचंडी पाठ महायज्ञ कहा जाता है, पाठ को 1000 बार करने को सहस्रचंडी महायज्ञ कहा जाता है और पाठ को एक लाख बार करने पर लक्ष्यचंडी महायज्ञ कहा जाता है।
शतचंडी पाठ से पहले यह करें
संकल्प शापविमोचन कवच अर्गला कीलक एवं न्यास नर्वाण मंत्र जप एवं पाठ के अंत में न्यास नवार्ण मंत्र, जप देवी सूक्तम त्रयरहस्य, सिद्धकुंजिका स्त्रोत, क्षमा प्रर्थना का पाठ करने से पाठ की पूर्ति होती है। यह आदि शक्ति जगत जननी मा जगदंबा की उपासना में विशेष प्रभावशाली होता है।
मां की प्रसन्नता हेतु किसी भी दुर्गा मंदिर के समीप सुंदर मण्डप व हवन कुंड स्थापित करके (पश्चिम या मध्य भाग में) दस उत्तम ब्राह्मणों (योग्य) को बुलाकर उन सभी के द्वारा पृथक-पृथक मार्कण्डेय पुराणोक्त श्री दुर्गा सप्तशती का दस बार पाठ करवाएं। इसके अलावा प्रत्येक ब्राह्मण से एक-एक हजार नवार्ण मंत्र भी करवाने चाहिए।
शक्ति संप्रदाय वाले शतचण्डी (108) पाठ विधि हेतु अष्टमी, नवमी, चतुर्दशी तथा पूर्णिमा का दिन शुभ मानते हैं। इस अनुष्ठान विधि में नौ कुमारियों का पूजन करना चाहिए जो 2 से 10 वर्ष तक की होनी चाहिए तथा इन कन्याओं को क्रमशः कुमारी, त्रिमूर्ति, कल्याणी, रोहिणी, कालिका, शाम्भवी, दुर्गा, चंडिका तथा मुद्रा नाम मंत्रों से पूजना चाहिए।
इस कन्या पूजन में संपूर्ण मनोरथ सिद्धि हेतु ब्राह्मण कन्या, यश हेतु क्षत्रिय कन्या, धन के लिए वेश्य तथा पुत्र प्राप्ति हेतु शूद्र कन्या का पूजन करें। इन सभी कन्याओं का आवाहन प्रत्येक देवी का नाम लेकर यथा ‘मैं मंत्राक्षरमयी लक्ष्मीरुपिणी, मातृरुपधारिणी तथा साक्षात् नव दुर्गा स्वरूपिणी कन्याओं का आवाहन करता हूं तथा प्रत्येक देवी को नमस्कार करता हूं।’ इस प्रकार से प्रार्थना करनी चाहिए। वेदी पर सर्वतोभद्र मण्डल बनाकर कलश स्थापना कर पूजन करें।
शतचण्डी विधि अनुष्ठान में यंत्रस्थ कलश, श्री गणेश, नवग्रह, मातृका, वास्तु, सप्तऋषि, सप्तचिरंजीव, 64 योगिनी 50 क्षेत्रपाल तथा अन्य देवताओं का वैदिक पूजन होता है।
जिसके पश्चात् चार दिनों तक पूजा सहित पाठ करना चाहिए। पांचवें दिन हवन होता है। इन सब विधियों (अनुष्ठानों) के अतिरिक्त प्रतिलोम विधि, कृष्ण विधि, चतुर्दशीविधि, अष्टमी विधि, सहस्त्रचण्डी विधि (1008) पाठ, ददाति विधि, प्रतिगृहणाति विधि आदि अत्यंत गोपनीय विधियां भी हैं जिनसे साधक इच्छित वस्तुओं की प्राप्ति कर सकता है।
शतचंडी पाठ महायज्ञ से लाभ
यह पाठ मनुष्य के जीवन में विशेष परिस्थिति में जैसे शत्रु पर विजय, मनोवांछित नौकरी की प्राप्ति, नौकरी में प्रमोशन, व्यापार में वृद्धि, परिवार में कलह क्लेश से मुक्ति एवं विभिन्न प्रकार की परेशानियों से मुक्ति आदि पाने के लिए कराया जाता है। शतचंडी पाठ करने से साधक की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। मां दुर्गा की विशेष कृपा सदैव भक्तों पर बनी रहती है। इस पाठ को करने से सभी बिगड़े काम बन जाते हैं।