कोंन है श्री सत्यनारायण भगवान
भगवान विष्णु ही इस सृष्टि के नियन्ता है जो वास्तव में सत्य है जो आदि, मध्य ,और अंत है जब श्रष्टि प्रलय मान होती है उस समय भी केवल भगवान विष्णु ही रहते है उस समय भगवान शेष सैय्या पर विश्राम करते हैं समस्त सृष्टि उनके रोम में लय और रोम से उतपन्न होती है
सत्यनारायण भगवान का व्रत कब करना चाहिए
श्री सत्यनारायण व्रत-पूजन पूर्णिमा या संक्रांति के दिन स्नान करके कोरे अथवा धुले हुए शुद्ध वस्त्र पहनें, माथे पर तिलक लगाएँ और शुभ मुहूर्त में पूजन शुरू करें। इस हेतु शुभ आसन पर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुँह करके बन्धु बांधवो के साथ सत्यनारायण भगवान का पूजन करें। इसके पश्चात् सत्यनारायण व्रत कथा का वाचन अथवा श्रवण करें।
पूजन शुरू करने के पूर्व पूजन की समस्त सामग्री व्यवस्थित रूप से पूजा-स्थल पर रख लें। पंचामृत में तुलसी की पत्तियाँ मिलाएँ। पंजीरी का प्रसाद बनाएँ। श्री सत्यनारायण भगवान की तस्वीर(फोटो) को एक चौकी पर कोरा लाल वस्त्र बिछाकर उस पर स्थापित करें। चौकी को चारों तरफ से केले के पत्तों(खंबे) से सजाएँ। गणेश एवं अंबिका की मूर्ति के अभाव में दो सुपारियों को धोकर, पृथक-पृथक नाड़ा बाँधकर कुंकु लगाकर गणेशजी के भाव से पाटे पर स्थापित करें व उसके दाहिनी ओर अंबिका के भाव से दूसरी सुपारी स्थापना हेतु रखें
सत्यनारायण पूजा का इतिहास
इस पूजा का उल्लेख स्कंद पुराण, रेवा कांड में सुत जी द्वारा शौनक ऋषियों को नैमिषारण्य में मिलता है। भारत के अधिकांश हिस्सों में श्री सत्य नारायण पूजा एक बहुत लोकप्रिय अनुष्ठान है।वैसे तो ये व्रत को कभी भी करे तो शुभ होता है पर हर महीने की पूर्णिमा के दिन, या सक्रांति आदि। विशेष अवसरों पर भगवान आराधना के रूप में भी किया जाता है।
सत्यनारायण पूजा किसी भी दिन किसी भी कारण से की जा सकती है। यह किसी भी उत्सव तक सीमित पूजा नहीं है, लेकिन पूर्णिमा (पूर्णिमा का दिन) इस पूजा के लिए विशेष रूप से शुभ माना जाता है। इस पूजा को शाम के समय करना अधिक उचित माना जाता है। हालाँकि, इस पूजा को सुबह के समय भी कर सकते हैं।
यह पूजा बहुत ही सरल है, जिसे कोई भी कर सकता है, और इसे करने के लिए ब्राह्मण की आवश्यकता होती है। मूल अवधारणा ऋषि नारद मुनि द्वारा दिए गए निर्देश थे, जब नारद जी पृथ्वी के भ्रमण पर आये उन्होंने जीवित प्राणियों को नाना प्रकार के दुखों से पीड़ित देखा चारों ओर जबरदस्त पीड़ा देखी। वह भगवान विष्णु के पास आये और मृत्यु लोक के प्राणियों के दुख को कहा तब भगवान विष्णु ने इस व्रत को ब्रह्मा जी को कहा ब्रह्मा जी ने सन्त नारद से कहा और नारद जी ने श्री व्यास जी को और व्यास जी ने सुत जी से और श्री सुत जी ने शौनक ऋषियो से कहा इस प्रकार से श्री सत्यनारायण व्रत पूजा का आगमन हुआ
कैसे करे सत्यनारायण व्रत
जब भगवान की याद आये वो घड़ी धन्य होती है लेकिन शास्त्र सम्वत यदि हम कोई सत्कर्म करे तो उसका फल हमे जरूर प्राप्त होता है विधान अनुसार इस व्रत को करने का उत्तम दिन पूर्णिमा, सक्रान्ति विशेष है सवेरे ब्रह्म मुहूर्त में जाग कर नित्य कर्म से निर्वत होकर स्नान आदि करे स्वच्छ वस्त्र धारण करे ब्रहामण को श्रद्धा पूर्वक बुलाये घर को बन्दनवार केले के पते लगाकर सजाये चौकी पर गौरी गणेश नवग्रह षोडश मात्र आदि सभी देवों का स्थान दे आवाहन करे फिर श्रद्धा पूर्वक पूर्व या उतर दिशा में मुख् करके पत्नी और बन्धु बांधवो सहित एक चित होकर पूजन करे कथा सुने
सत्यनारायण व्रत सामग्री
कलश मिट्टी का 1
नारियल पानी वाला 1
रोली 2
कलावा 4
लौंग 20 रु
इलायची 20 रु
सुपारी। 7
पान के पते 7
मिश्री 100 ग्रा,
बतासे 500 ग्रा।
फूल माला 5
खुले फूल 250 ग्रा,
फल 5 तरह के
मिठाई सवा की,5 तरह की
लाल कपड़ा सवा मि,
जनेऊ 5 नग
दुब घास
दोना 2 गड्डी
चावल 1 की,
कमल गठ्ठा 50 ग्रा
पन्चामृत *(दूध दही शहद घी गंगाजल )
तुलसी दल
इत्र शीशी 1 ( सेंट)
रुई
माचिस
हवन सामग्री 500 ग्रा,
घी 500 ग्रा,
काले तिल 50ग्रा
इंद्र जौ 50ग्रा,
चन्दन चुरा 50ग्रा,
बुरा या खांड 250 ग्रा
कपूर 1 पैकेट
हवन समिधा 2 पैकिट ( लकड़ी)
प्रशाद क्या बनाये
गेहू या साटि या धनिया के आटे को भूनकर पंजीरी बनाये उसमे केला अमरूद सेब यानी ऋतू फल जो भी हो मिलाये आप प्रशाद के लिए बूंदी भी ले सकते हैं यदि मिठाई का प्रशाद बाटना चाहे या फल का बाटना चाहे तो आप अपनी श्रद्धा के अनुसार ले सकते है
पंजीरी के साथ पन्चामृत जरूर बनाये