कब से है मल मास अधिक मास
आगामी विक्रमी संवत 2080 सन 2023 -24 ई, में चंद्र श्रावण मास अधिक मास (Shravan Adhik Mas) ,मलमास ,पुरुषोत्तम मास ,इसे कहते हैं वह होगा
इस (Shravan Adhik Mas) अधिक मास की समय अवधि 18 जुलाई मंगलवार से 16 अगस्त बुधवार सन 2023 ई तक रहेगी
Shravan Adhik Mas – अधिक मास में निर्णय
जिस महीने में सूर्य सक्रांति न हो वह महीना अधिक मास होता है और जिसमें दो सक्रांति हो वह महा क्षय मास होता है
असंक्रान्तिमासोऽधिमासः स्फुटः स्याद् ।
द्विसंक्रान्तिमासः क्षयाख्यः कदाचित् ।।
प्रचलन में सौर वर्ष और चंद्र वर्ष में सामंजस्य स्थापित करने के लिए हर तीसरे वर्ष पंचांग में एक चंद्रमास की वृद्धि कर दी जाती है लोक व्यवहार में इसी को अधिक मास के अतिरिक्त अधिक मास या मलमास तथा आध्यात्मिक विषयों में अत्यंत पुण्य दाई होने के कारण पुरुषोत्तम मास आदि नामों से भी विख्यात है
ज्योतिष गणना के अनुसार एक सौर वर्ष का मान 365 दिन 6 घंटे एवं 11 सेकंड के लगभग होता है जबकि चंद्र वर्ष 354 दिन एवं लगभग 9 घंटे का होता है दोनों वर्ष मानो में प्रतिवर्ष 10 दिन 21 घंटे 9 मिनट का अंतर अर्थार्त 11 दिन का अंतर पड़ जाता है इस अंतर में सामंजस्य स्थापित करने के लिए 32 महीने 16 दिन 4 घड़ी बीत जाने पर अधिक मास का निर्णय किया जाता है पुरुषार्थ चिंतामणि के अनुसार एक अधिक मास से दूसरे अधिक मास तक की अवधि पुनरावृति 28 माह माह से लेकर 36 माह के भीतर होना संभव है इस प्रकार हर तीसरे वर्ष में अधिक मास या पुरुषोत्तम मास की पुनरावृति होना संभव है
पुरुषोत्तम मास (Shravan Adhik Mas) का महात्म्य एवं कर्तव्य
इस मास की मलमास की दृष्टि से जैसे निंदा है पुरुषोत्तम मास की दृष्टि से इसकी बड़ी महिमा है अधिक मास में तपस्या कर भगवान विष्णु से उनका पुरुषोत्तम नाम प्राप्त किया था भगवान कृष्ण ने इसको अपना नाम देकर कहा सद्गुणों कीर्ति प्रभाव पराक्रम भक्तों को वरदान देने आदि जितने भी गुण मुझ में हैं और उनसे जिस प्रकार में विश्व में पुरुषोत्तम के नाम से विख्यात हूं उसी प्रकार यह मलमास भी भूतल पर पुरुषोत्तम नाम से प्रसिद्ध होगा
अहमेते यथा लोके प्रथित:पुरुषोत्तम:तथायमपि लोकेषु प्रथित:पुरुषोत्तम:
अधिक मास के आने पर जो व्यक्ति श्रद्धा एवं भक्ति पूर्वक व्रत उपवास श्री विष्णु पूजन पुरुषोत्तम महात्मय का पाठ दान आदि शुभ कर्म करता है वह मनोवांछित फल प्राप्त कर लेता है और मरणो उपरांत गोलोक पहुंचकर भगवान श्री कृष्ण का सानिध्य प्राप्त करता है इस प्रकार इस मास में गीता पाठ, श्री राम ,कृष्ण, के मंत्रों पंचाक्षर, शिव मंत्र, अष्टाक्षर ,नारायण मंत्र, द्वादश अक्षर ,वासुदेव मंत्र, आदि के जप का लाख गुना करोड़ गुना या अनंत फल होता है
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द्वादशाक्षरमन्त्रोऽयं यो जपेत् कृष्णसन्निधौ ।
दशवारमपि ब्रह्मन् स कोटिफलमश्नुते ।।
(पुरुषोत्तममास-माहा.)
श्रावण (अधिक मास) का फल
विक्रमी संवत 2080 में प्रथम श्रावण शुक्ल प्रतिपदा तदनुसार 18 जुलाई 2023 मंगलवार से श्रावण अधिक मास प्रारंभ होकर 16 अगस्त बुधवार तक व्याप्त रहेगा प्रथम श्रावण शुक्ल पक्ष और द्वितीय श्रावण कृष्ण पक्ष दोनों पक्षों के अंतराल मध्य अवधि में सक्रांति का अभाव होने से श्रावण मास अधिक मास या पुरुषोत्तम मास माना जाएगा शास्त्रों में श्रावण मास का फल इस प्रकार से वर्णित है
दुर्भिक्षम श्रावणे युग्मे पृथ्वी नाश :प्रजाक्षय:
जिस वर्ष में दो श्रावण हो अर्थात श्रावण अधिक मास हो तो उस वर्ष पृथ्वी पर कहीं दुर्भिक्ष ,उपयोगी वर्षा की कमी एवं अग्निकांड युद्ध यानादी दुर्घटनाओं एवं प्राकृतिक प्रकोपो से धन एवं जन हानि की आशंका होती है अधिक मास काल में गोचर वंश मंगल शनि मध्य समसप्तक योग भी होने से पृथ्वी के उत्तर गोलार्ध के दक्षिण दिशा में पड़ने वाले देशों जैसे रूस, चीन ,ताइवान ,यूक्रेन ,पाकिस्तान ,तथा अन्य सभी यूरोपीय देशों में आंतरिक व ब्रह्मा राजनीतिक परिस्थितियों विशेष रूप से प्रभावित रहेंगी इन देशों में कहीं आंतरिक विद्वेष ,उपद्रव, अग्निकांड, बाढ़, युद्ध ,भूकंप, आदि से भी जन व धन संपदा की हानि की संभावनाएं होंगी
पुरुषोत्तम मास में नित्य कर्म एवं उद्यापन अर्थात पालनीय नियम
भविष्य उत्तर पुराण के अनुसार पुरुषोत्तम मास में ईश्वर के निमित्त जो व्रत उपवास स्नान दान पूजन आदि किए जाते हैं उन सब का अक्षय फल होता है और वृत्ति के सब अनिष्ट नष्ट हो जाते हैं पुराणों में अधिक मास में पूजन व्रत दान संबंधी विभिन्न प्रकार के विधान बताए गए हैं इस मास के प्रारंभ होते ही प्रातः काल सूर्योदय से पहले उठकर शौच ,स्नान,संध्या आदि अपने अपने अधिकार के अनुसार नित्य कर्म करके भगवान का स्मरण करना चाहिए और पुरुषोत्तम मास के नियम ग्रहण करने चाहिए पुरुषोत्तम मास में श्रीमद्भागवत पुराण का पाठ करना महान पुण्य प्रदायक है और एक लाख तुलसी पत्र से शालिग्राम भगवान का पूजन करने से अनंत पुण्य होता है विधि पूर्वक षोडशोपचार से नित्य भगवान का पूजन करना उचित है इस पुरुषोत्तम मास में
गोवर्धनधर्म वंदे गोपालम गोपरूपनिम
गोकुलोत्सवमिशनम गोविंदम गोपीकाप्रियम
इस मंत्र का 1 माह तक भक्ति पूर्वक बार बार जप करने से पुरुषोत्तम भगवान की प्राप्ति होती है प्राचीन काल में श्री कौण्डिण्य ऋषि ने यह मंत्र बताया था मंत्र जपते समय नवीन मेघ श्याम द्विभुज मुरलीधर पीत वस्त्र धारी श्री राधिका जी के सहित श्री पुरुषोत्तम भगवान का ध्यान करना चाहिए
हेमाद्री अनुसार पुरुषोत्तम मास आरंभ होने पर प्रातः स्नानादि नित्य कर्म से निवृत्त होकर एक भूक्त या नकक्त व्रत रखकर भगवान विष्णु स्वरूप सहसत्रांशु ( भास्कर ) का मंत्रों द्वारा लाल पुष्प सहित पूजन एवं कृष्ण स्तोत्र का पाठ कर कर के कांस्य से पात्र में भरे हुए अन्य फल वस्त्र आदि का दान किया जाता है पूजन उपरांत अधिक मास के अंतिम दिन विविध प्रकार के मिष्ठान घी, गुड और अन्न का दान ब्राह्मणों को करें तथा घी गेहू, गुड़ के बनाए हुए 33 पुओ को पात्र में रखकर निम्न मंत्र पढ़कर फल मिष्ठान वस्त्र दक्षिणा सहित ब्राह्मण को दान करें
अधिक मास में त्याज्य कर्म
अधिक मास में फल की प्राप्ति की कामना से किए जाने वाले सभी काम वर्जित हैं और फल की आशा से रहित होकर करने के आवश्यक सब काम किए जा सकते हैं ज्योतिष आचार्यों के मत अनुसार पुरुषोत्तम मास में कुछ नित्य नैमित्तिक एवं काम्य में कर्मों को करने का निषेध माना गया है
जैसे विवाह, यज्ञ ,देव प्रतिष्ठा, महादान ,चूड़ाकर्म, मुंडन आदि पहले कभी न देखे हुए देव तीर्थों में गमन, नव ग्रह प्रवेश वर्षोउत्सर्ग, भूमि, आदि संपत्ति की खरीद वह नई गाड़ी का खरीदना बेचना शुभ कार्यों का आरंभ अधिक मास काल में नहीं करना चाहिए
इसके अतिरिक्त अन्य अनित्य व अनैमैंतिक कार्य जैसे नववधू प्रवेश, नव यघोपवित धारण, व्रत उद्यापन ,नव अलंकार, नवीन वस्त्र धारण ,करना कुआ तालाब, बावली, बाग,आदि का खनन करना भूमि वाहन आदि का क्रय करना काम्य व्रत का आरंभ भूमि स्वर्ण तूला गाय आदि का दान अष्टका श्राद्ध उपनयन संस्कार द्वितीय वार्षिक श्राद्ध उपकर्म आदि कर्मों के संपादन का निषेध माना गया है
अधिक मास के करने योग्य कर्म
अधिक मास में जिस काम्य कर्म के प्रयोग का आरंभ अधिक मास से पहले ही हो चुका है उसकी सम्पूर्ति अधिक मास में विहित है मलमास में मरने वाले का वार्षिक श्राद्ध मासिक श्राद्ध पितरों की क्रिया करना तीर्थ वह गजछाया श्राद्ध यदि मध्य में किसी के मलमास हो तो एक मास का अधिक ही श्राद्ध होगा अर्थात जिस मास में यह फल प्राप्त होता है उसकी द्विरावृत्ति होती है यदि मलमास में ही किसी की मृत्यु हो तो उससे जो 12वा माह हो उसमें प्रेत क्रिया को समाप्त करना चाहिए तीव्र ज्वर या प्राणघतक रोग आदि की निवृत्ति के लिए रूद्र पूजन आदि अनुष्ठान पुत्र संतान जन्म के बाद अन्नप्राशन गंड मूल जन्मदिन पूजन संबंधी आवश्यक कर्म कपिल षष्ठी जैसे दुर्लभ योगों के प्रयोग नित्य पूजा जप दान आदि कर्म या ग्रहण संबंधी श्राद्ध दान जप आदि किए जा सकते हैं
आवश्यककर्म मांसाँख्यम: मलमासमृताब्दकम :
तीर्थेभेच्यो: श्राद्ध माधानाघ: पितृकिरायांम: