शुक्रवार व्रत नियम उद्यापन कथा-Shukarwar Vart Niyam Uadhapan Katha

व्रत के जरूरी नियम

इस व्रत में भोग का विशेष महत्‍व है। माता संतोषी को गुड़ और चना का भोग लगाना चाहिए। इस व्रत को रखते समय यदि आप लाल वस्‍त्र धारण करते हैं अति उत्‍तम होता है। इस व्रत में खटाई का सेवन निषेध है। साथ ही संतोषी माता के व्रत में व्रती को नमक का सेवन भी नहीं करना चाहिए।

शुक्रवार व्रत कब से शुरू करना चाहिए?

शुक्रवार का व्रत शुक्ल पक्ष के प्रथम शुक्रवार से शुरू करना चाहिए। माता संतोषी के 16 शुक्रवार तक व्रत करने से सुख-सौभाग्य की प्राप्ति होती है।

शुक्रवार के दिन शुद्ध घी का दीपक जलाने और तुलसी के पौधे की पूजा करने से माता लक्ष्मी बेहद प्रसन्न होती हैं। शुक्रवार को पूजा के दौरान मां लक्ष्मी के मंदिर जाकर उन्हें लाल वस्त्र, लाल बिंदी, सिंदूर, लाल चुन्नी और लाल चूड़ियां अर्पित करें।

अगर आप शुक्रवार को वैभव लक्ष्मी का व्रत रख रहे हैं तो आपको इसे 9, 11 और 21 शुक्रवार के लिए रखाना चाहिए. अंतिम शुक्रवार के दिन इस व्रत का उद्यापन करना चाहिए. उद्यापन के दिन व्यक्ति को वैभव लक्ष्मी की पूजा करने के बाद 7 से 9 कन्याओं को खीर और पूरी खिलानी चाहिए. भोजन करने वाली कन्या उस दिन की खट्टा पदार्थ ग्रहण न करे

शुक्रवार लक्ष्मी व्रत कथा

प्राचीन समय की बात है। एक बार एक गांव में एक निर्धन ब्राह्मण निवास करता था। ब्राह्मण नियमित रूप से श्री हरि विष्णु की पूजा किया करता था। भगवान विष्णु ने उसकी पूजा-भक्ति से प्रसन्न होकर एक दिन उसे दर्शन दिए और ब्राह्मण से अपनी मनोकामना प्रकट करने के लिए कहा। निर्धन ब्राह्मण ने लक्ष्मी जी का निवास अपने घर में होने की इच्छा प्रकट की। यह सुनकर श्री हरि विष्णु ने लक्ष्मीजी की प्राप्ति का मार्ग ब्राह्मण को बता दिया। श्री हरि विष्णु ने कहा कि मंदिर के सामने हर रोज सबेरे एक स्त्री आती है जो यहां आकर उपले थापती है। तुम उसे अपने घर आने को आमंत्रित करो। वह स्त्री कोई और नहीं स्वयं देवी लक्ष्मी है। देवी लक्ष्मी के तुम्हारे घर आने के बाद तुम्हारा घर धन और धान्य से भर जाएगा और तुम्हें किसी प्रकार की कमी नहीं रहेगी। यह कहकर श्री हरि विष्णु अदृश्य हो गए।

अगले दिन सुबह सबेरे चार बजे ही निर्धन ब्राह्मण मंदिर के आगे बैठ गया। कुछ समय पश्च्यात जब लक्ष्मी जी उपले थापने के लिए आईं तो ब्राह्मण ने उनसे अपने घर आने का निवेदन किया। ब्राह्मण की बात सुनकर लक्ष्मी जी समझ गईं कि यह सब श्री हरि विष्णु के कहने पर हुआ है। लक्ष्मी जी ने निर्धन ब्राह्मण को कहा की तुम शुक्रवार को लक्ष्मी का व्रत करो। 11 व्रत करने से तुम्हारा मनोरथ पूरा होगा। ब्राह्मण ने देवी के कहे अनुसार व्रत और पूजन किया । विधि विधान से उद्यापन करने के बाद देवी लक्ष्मी ने अपना वादा पूरा किया और निर्धन ब्राह्मण निर्धन नहीं रहा। उस दिन से यह मान्यता बन गयी कि शुक्रवार को यह व्रत विधि-विधान से करने से व्यक्ति की मनोकामना पूरी होती है। 

उद्यापन विधि

निर्धारित संख्या में शुक्रवार का व्रत करने के बाद ‘व्रत उद्यापन’ करना जरूरी है।  आपको अंतिम उपवास शुक्रवार को 11 विवाहित महिलाओं को अपने स्थान पर आमंत्रित करने और उन्हें प्रसाद, भोजन, उपहार और लक्ष्मी व्रत की किताबें भेंट करने की आवश्यकता है।  जब भक्त तंग जगह पर होते हैं, तो देवी उन्हें बचाने में मदद करती हैं।  

शुक्रवार लक्ष्मी व्रत का पालन करते समय याद रखने वाली सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि आपको इसे शुद्ध भक्ति और पूर्ण विश्वास के साथ करना चाहिए क्योंकि तभी आपकी सभी मनोकामनाएं पूरी होंगी।

शुक्रवार संतोषी माता व्रत के नियम

संतोषी माता पूजा प्रत्येक शुक्रवार को 16 सप्ताह की अवधि के लिए की जाती है। शुक्रवार के दिन प्रात: स्नान करके पूजा स्थल पर संतोषी माता की तस्वीर लगाएं और एक छोटा कलश रखें। संतोषी माता की तस्वीर को फूलों से सजाएं और प्रसाद के रूप में गुड़ का टुकड़ा और केले के साथ चना रखें। व्रत के दिन दही, नींबू आदि कुछ भी खाना या छूना नहीं चाहिए।

देवी संतोषी माता की तस्वीर के सामने दीया (दीप) जलाएं। मंत्र जाप शुरू करें, कथा पढ़ें और माता की आरती करें। पूजा के दिन बिना कुछ खट्टा खाए संतोषी माता का अनुष्ठान किया जाता है।पूरे दिन उपवास करें या दिन में एक बार भोजन कर सकते हैं।

संतोषी माता का अनुष्ठान शुरू करने से पहले महत्वपूर्ण पूजा सामग्री एकत्र कर लीजिये; जैसे कलश, पान के पत्ते, फूल,  चना और प्रसाद के लिए गुड़, आरती के लिए कपूर, दीये, हल्दी और कुमकुम, संतोषी माता की तस्वीर, अगरबत्ती, कलश के लिए नारियल और हल्दी मिले चावल।

संतोषी माता के अनुष्ठान के दौरान, पहली प्रार्थना संतोषी माता के पिता गणेश और माता रिद्धि सिद्धि के लिए होती है। संतोषी माता कथा पढ़ते समय हाथ में गुड़ और चने की दाल रखें। सुनने वाले हर समय “संतोषी माता की जय” बोलते रहें। कथा पूरी करने के बाद हाथ में पकड़ा हुआ गुड़ और चना इकट्ठा करके गाय को खिलाना चाहिए। पात्र में जो गुड़ और चना रखा हो उसे प्रसाद के रूप में सभी को बांट देना चाहिए।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are makes.

You may also like

Copyright © 2025 Vedagya, All Rights Reserved